४ मार्च, १९६७

 

   रूपांतरकी यह समस्या, मैं ज्यादा-ज्यादा स्पष्ट रीतिसे देख रही हू कि इसके लिये तीन उपाय है, आगे बढ़नेके तीन रास्ते है और पूर्ण होनेके लिये तीनोंको मिलाना चाहिये।

 

   एक, स्वभावत:, सबसे महत्त्वपूर्ण मार्ग है जिसे हम ' 'आध्यात्मिक' ' कह सकते हैं । वह है 'चेतना' के साथ संपर्क -- प्रेम-चेतना-शक्ति, हा, यही, यही हैं तीन रूप : परम प्रेम-चेतना-शक्ति, और संपर्क, तादात्म्य. सारी चीजका अर्थ हुआ सभी भौतिक कोषाणुओंको उस ( तत्) के ग्रहण करने योग्य, उसे अभिव्यक्त करने योग्य -- वह बन जाने योग्य ' 'बनाना '' ।

 

   सभी साधनोमें यह सबसे ज्यादा सशक्त और सबसे ज्यादा अनिवार्य है ।

 

   एक गुह्य मार्ग है जो सभी मध्यवर्ती लोकोंका हस्तक्षेप लाता है । इसमें सभी शक्तियों और सभी व्यक्तित्वों और सभी मध्यवर्ती क्षेत्रोंका विस्तृत ज्ञान होता है और वह ( मार्ग) इन सबका उपयोग करता है । वहां व्यक्ति अधीमानसके देवोंके उपयोग करता है । यह दूसरा मार्ग है । शिव, कृष्ण, श्रीमांके समस्त रूप इस दूसरे मार्गके अंश है ।

 

   और फिर उच्चतर बुद्धिका मार्ग है । यह वैज्ञानिक भावसे परेके भावका प्रक्षेपण है । यह समस्याको नीचेसे पकड़ता है । इसका भी महत्व है । विस्तृत व्यवहारकी दृसतीटसे यह मार्ग मोटे अनुमानोंको कम कर देता है और ज्यादा प्रत्यक्ष तथा ज्यादा यथार्थ क्रिया लाता है ।

 

    अगर तीनोंको मिलाया जा सकें तो स्पष्ट है कि चीज ज्यादा तेज चलेगी । पहलेके बिना, कुछ भी संभव नहीं है, बल्कि पहलेके बिना वाकी दोनों अवास्तविक रहते है : वे कहीं नहीं पहुंचाते । तुम अनिश्चित कालतक घूमते रहते हों । लेकिन अगर तुम पहलेको दूसरे दोसे लैस कर दो तो

 

मेरा ख्याल है कि क्रिया बहुत अधिक यथार्थ, अधिक सीधी और अधिक तेज हों जाती है।

 

   इन दिनोके ''अध्ययन'' का यही निष्कर्ष है ।

 

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